हेलो फ्रेंड्स स्वागत है, आप सभी का मेरी इस कहानी में.. उम्मीद है आपको मेरी ये कहानी पसंद आ रही होगी। यदि आपने इस कहानी का पहला भाग नहीं देखा है, तो पहले इस कहानी का पहला भाग ‘नया जीवन भाग-1‘ जरूर पढ़ ले, जिससे आपको यह कहानी समझने में आसानी होगी और मज़ा भी अधिक आएगा। तो चलिए कहानी शुरू करते हैं….
दो दिन बीत चुके थे… मुझे अभी भी यक़ीन नहीं हो रहा था कि मैं इस हालत में हूँ। ये सब क्या हो रहा हैं मेरी समझ से परे था।
स्नेहा और सभी लोग मुझे घर ले जाने के लिए हॉस्पिटल आये हैं डॉक्टर ने सारी फॉर्मेलिटी पूरी कर दी। मैं अभी हॉस्पिटल के गाउन में ही था । स्नेहा ने मुझे घर के कपड़े दिए और पार्टिशन में चेंज करने लिए कहा। दीपक और उसके पापा बाहर जा चुके थे।
अब दिक्कत ये थी कि मुझे साड़ी पहनना नहीं आता था। मैं कैसे पहनूंगा समझ नहीं आ रहा था । फिर मुझे स्नेहा से मदद लेनी सही लगा । मैंने स्नेहा को आवाज लगाया…” बेटी..! जरा मेरी मदद करना… मुझे थोड़ी दिक्कत हो रही हैं साड़ी पहनने में ।
फिर स्नेहा मेरे पास आती है और मेरी मदद करती है…। वैसे मुझे उसका नाम मालूम था लेकिन रश्मि आंटी की कोई याददाश्त याद नहीं थी, इसलिये मैं उससे उसका नाम पूछता हूँ।
मैं- बेटी तुम्हारा नाम क्या है? और मैं कौन हूँ?
मेरी आवाज एक दम पतली सी लेकिन बहुत प्यारी,मधुर संगीत की तरह निकलती है। मुझे बड़ा अजीब लग ये मेरी ही आवाज है क्या…!
मेरी बात सुनके स्नेहा थोड़ी उदास हो जाती है उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं और आये भी क्यों न… जब खुद की ही माँ अपनी औलाद को पहचान नहीं पा रही है…।
वो कुछ बोलने ही वाली थी कि मेरा सिर चकराने लगता है मेरे माइंड में रश्मि आंटी की इमेज दिखने लगती है जैसे वो घर पे साड़ी पहन रही हो…
मुझे चक्कर से आने लगता है ..।
स्नेहा मुझे देखकर घबरा जाती है.. क्या हुआ मम्मी..! आप ठीक तो है न? मैं डॉक्टर को बुलाती हूँ…!
मैंने बोला – नहीं मैं ठीक हूँ थोड़ा सिर बस दर्द दे रहा हैं कुछ देर में ठीक हो जाएगा..।
मैं तीन -चार दिन से बिस्तर में ही पड़ा था अब और नहीं यहाँ रहना चाहता था तो मैंने उसको मना कर दिया डॉक्टर को बुलाने से।
भले ही रश्मि आंटी की बॉडी में उनकी आत्मा की जगह मेरी आत्मा आ गयी है लेकिन इस दिमाग में उनकी मेमोरी स्टोर है। जो लगता हैं जैसे-जैसे मैं ठीक होता जाऊंगा तो वैसे-वैसे शायद.. उनके बारे में और जानकारी मिलती रहेगी..।
अब हम लोग गाड़ी में बैठे थे। स्नेहा के पापा ड्राइविंग सीट पर बैठे थे और उनके बाज़ू में दीपक बैठा था..। मैं और स्नेहा पीछे वाली सीट पे बैठे थे…।
स्नेहा फिर बोलती है…. मम्मी…! आपका नाम रश्मि गुप्ता हैं और जैसा कि आपको पता ही चल गया होगा कि मैं आपकी बेटी हूँ। फिर वह दीपक की और इशारा करती है और बोलती है, ये मेरे भैया है और आपके बेटे … इनका नाम दीपक गुप्ता है। दीपक हमारी और देखकर स्माइल करता है और आगे देखने लगता है…।
फिर वह उसके पापा की और इशारा करती है और बोलती है ये मेरे पापा है और धीरज गुप्ता और आपके पतिदेव..!
पतिदेव सुनके मुझे थोड़ा अजीब सा लगता है, थोड़ी शरम सी आती हैं और मेरे गाल लाल हो जाते हैं..।
ये देखके स्नेहा मुश्कुरा के बोलती है.. अरे मम्मी आप तो नई नवेली दुल्हन की तरह शरमा रही हो…!
ये सुनके सब हँसने लगते हैं..
मैं बोलता हूँ… ऐसी बात नहीं है सब नया नया सा लग रहा है..।
इतना बोलके मैं खिड़की से बाहर की और देखने लगता हूँ।
कुछ ही देर में हम घर पहुँच जाते हैं।
वैसे तो मैं स्नेहा के घर कई बार आ चुका हूँ लेकिन रश्मि के रूप में पहली बार था अब यही मेरा घर होने वाला था। धीरज हमको घर में छोड़कर ऑफिस के लिए चले गए थे…। स्नेहा ने मुझे घर दिखाया । घर ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन अच्छा हैं एक हॉल, किचन, 3 बैडरूम, और एक गेस्टरूम हैं।
स्नेहा मुझसे बोली- आप अभी आराम कीजिए थक गई होंगी, हम शाम को आराम से बात करेंगे।
अब मैं रश्मि के बेडरूम में आ गया और दरवाजा बन्द कर लिया। मैं पलंग पर बैठ गया और गहरी सांस लिया…। एक किंग साइज का बेड है जिसमें दो लोग आराम से सो सकते हैं आसपास रूम को देख रहा था। पूरा रूम फीमेल परफ्यूम सा महक रहा था..। मेरी नज़र पास रखे टेबल पर पड़ी, जिसमे एक फोटोफ्रेम रखा था उसमे धीरज और रश्मि की फ़ोटो थी। उस फ़ोटो में रश्मि ख़ुश और काफी सुन्दर लग रही थीं। फिर मैंने दीवार पर एक फ़ोटो देखा जिसमें सभी लोगों की एक ग्रुप फ़ोटो थी उसमें धीरज, दीपक ,स्नेहा और रश्मि भी थी। उस फ़ोटो में रश्मि, स्नेहा की बड़ी बहन जैसी लग रही थी। फिर मैं दूसरी तरफ घूमा तो मेरी नज़र ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी उसमें एक बड़ा सा आईना लगा हुआ था। मेरी नज़र जैसे ही आईने पर पड़ी तो मैं एक दम से चौक गया । क्योंकि आईने में रश्मि का प्रतिबिम्ब दिख रहा था। ये पहली बार था जब मै रश्मि के शरीर में होकर अपने आप को आईने में देख रहा था। हॉस्पिटल में मेरी कंडीशन ठीक नहीं थी, साड़ी पहनते वक्त भी में खुद को अच्छे से देख नही पाया था। मैं आईने के सामने खड़े होके खुद को देख रहा था। ये मैं हूँ… रश्मि गुप्ता! अब यही मेरी पहचान है। मैं ख़ुद को निहार रहा था..! कितनी प्यारी आँखे हैं और पंखुड़ी जैसे गुलाबी होंठ…! मैं आईने के और नज़दीक आके बैठ गया और अपनी जुल्फ़े सवारने लगा। फिर मेरी नज़र अपनी गर्दन से होते हुए मेरे बूब्स पर पड़ी मुझे बड़ा अजीब फील हो रहा था अब मेरे पास बूब्स भी हैं..! मैने अपना पल्लू नीचे सरकाया और खुद को देख रहा था। मेरी साँसे बहुत तेज़ चल रही थी लगभग 34D साइज के बूब्स होंगें, जो मेरी साँसों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे…!
मुझे बहुत हॉट फ़ील हो रहा था , मुझे पसीना आने लगा था। मैं अंदर से लड़का ही था खुद को देख के ही उत्तेजित होने लगा..। फिर मैंने अपने ब्लाउज के हुक खोले और ब्लाउज उतार दिया। अब मेरे ऊपर के हिस्से में सिर्फ ब्रा थी। मैंने कभी रश्मि आंटी को गलत नज़र से नहीं देखा था क्योंकि वो हमेशा अच्छे तरीके से साड़ी पहनकर ढकी रहती थी…। मुझे क्या पता था कि रश्मि आंटी इतनी सेक्सी लगती है। मेरी अब ख़ुद को देखने की चाहत और बढ़ गयी और मैं अटैच बाथरूम में चला गया और पूरी साड़ी पेटिकोट उतार दिया और बाथरूम के शीशे में खुद को देख रहा था । अब मैं सिर्फ ब्रा पैंटी में था । इतना ज्यादा हॉट फील कर रहा था न कि मैं क्या बताऊँ…। मैंने पीछे मुड़कर अपनी गांड देखी… क्या मस्त गांड है यार गोरे-गोरे एक दम गोल मटोल बाहर की ओर निकले हुए । फिर मैंने अपनी ब्रा पेंटी भी उतार दी। अब मैं पूरा नंगा था, मेरे निप्पल्स पूरे टाइट हो गए थे । फिर मैंने हल्के से उनको दबाया कुछ अलग ही अहसास हुआ जो आजतक मुझे कभी फील नहीं हुआ था। फिर मैंने नीचे देखा जहाँ मेरा लंड हुआ करता था वहाँ एक गुलाबी प्यारी सी चूत है जिसके ऊपर हल्के हल्के बाल है। मुझे अफसोस हो रहा था कि मेरा लण्ड अब गायब हो चुका है। मैंने देखा मेरी नयी नवेली चूत से कुछ टपक रहा है। मैंने अपनी चूत पे उँगली लगाई मेरे मुझे थोड़ा अजीब सा लेकिन आनंदमय फ़ील हुआ। ऐसा जिंदगी में कभी महसूस नहीं हुआ था। फिर मैंने खुद को कंट्रोल किया। मुझे समझ नही आ रहा था मैं क्या कर रहा हूँ। शायद फ़ीमेल हार्मोन्स के कारण मेरे दिमाग पर अलग इफ़ेक्ट पड़ रहा है।
इसके बाद मैं फ्रेश हुआ शॉवर लिया और टॉवेल लपेट के बाहर आया। फिर मैंने कपड़ो वाला आलमारी खोला उसमें एक साइज जेन्स के कपड़े थे शायद धीरज के थे। और एक तरफ ढेर सारी साड़ी, ब्लाउज, और पेटीकोट रखे थे। सभी ब्लाउज सिम्पल थे पीछे पूरी कवर बैक और सामने से छोटे गले वाले..। साड़ी भी सिम्पल ही रखी हुई थी.। आज के ज़माने की मॉडर्न टाइप की बैकलेस और डीप नेक वाले ब्लाउज नहीं थे। जाहिर सी बात है रश्मि को सिम्पल रहना पसंद था। फिर मैंने ड्रॉज खोला उसमें ब्रा पैंटी थी। उनको मैंने हाथ में पकड़ा अजीब लग रहा था। फिर मैंने ब्रा पैंटी पहनी और कपड़े पहनकर तैयार हुई । फिर मुझे नींद सी आने लगी तो सो मैं बेड पे सो गया। नींद में अजीब से सपने आ रहे थे। जिसमें रश्मि थी उसकी डैली रूटीन के काम वो करती हुई किस तरह से वो नहाती है तैयार होती है और घर के सारे काम करती हैं खाना बनाना, सफाई करना बच्चों का ख़्याल रखना, स्कूल जाना और भी बहुत कुछ। शाम के 5 बज जाते हैं तब मेरी नींद खुलती हैं। मैं बिस्तर उठ के जाता हूँ फिर सपने के बारे में सोचने लगता हूँ। शायद मुझे रश्मि की याददाश्त रिकॉल हो रही हैं कि अपनी लाइफ कैसे जीती थी खैर मुझे अभी तक ज्यादा पता नहीं चल पाया बस रश्मि की थोड़ी बहुत लाइफस्टाइल के बारे में जान सका कि वो इस टाइप से रहती होगी।
फिर स्नेहा ने मेरे रूम का दरवाजा खटखटाया और बोली- मम्मी आप उठ गयी क्या ?
मैंने अंदर से आवाज लगाया- हाँ मैं उठ गयी, रुको एक मिनट..।
फिर मैंने दरवाजा खोला ,सामने रश्मि ने बोली- अब आपको कैसा लग रहा है?
मैं- ठीक लग रहा है।
स्नेहा- मैंने चाय बनायी हैं। चलिए चाय पीते हैं।
फिर हम लोग हॉल की और चल ये।
वहाँ सोफे पे दीपक पहले से बैठा हुआ था। मैं भी दूसरी तरफ बैठ गया। फिर स्नेहा ने चाय लेके आयी। कुछ देर मैं धीरज भी ऑफिस से आ गया। वो भी हम लोगों के साथ बैठ गया। स्नेहा ने फिर धीरज के लिए भी चाय ले आयी।
सभी ने मेरा हाल चाल पूछा, और मैने भी ठीक हूँ जवाब दिया।
फिर स्नेहा ने बोलना शुरू किया- मम्मी आपकी याददाश्त चली गयी है तो आपको अजीब लग रहा होगा, हम सब अजनबी लग रहे होंगे । लेकिन टेंशन की कोई बात नहीं है हम सब मैनेज कर लेंगे। धीरे-धीरे हम सब घुल-मिल जाएंगे और पहले की तरह खुशी से एक परिवार की तरह रहेंगे।
मैंने हाँ में जवाब दिया।
फिर स्नेहा दोबारा बात शुरू करती है- मम्मी आपको मैं बता कि आप एक शान्त स्वभाव की सुशील पतिव्रता महिला रही है आप हम सब का अच्छे से ख्याल रखती रही है थोड़ी बोरिंग पुराने ख्यालात की रही है। लेकिन कोई बात नहीं अब हर चीज़ नए सिरे से नये मॉडर्न तरीके से करेंगे… आप चिंता मत कीजिये..।
मैं थोड़ा मुस्कुराया.. और ठीक है बोला..।
धीरज- रश्मि तुम एक स्कूल टीचर हो लेकिन तुम्हें अभी जॉइन करने की जरूरत नहीं है, जब तुम्हे ठीक लगे तब तुम जॉइन कर सकती हो। प्रिंसिपल इस बात के लिए मान गए हैं।
मैंने ठीक है में जवाब दिया..।
स्नेहा- क्या पापा…! आप भी न…! मम्मी को काम का डरा रहे हो।
धीरज- नहीं स्नेहा..! मैं नहीं डरा रहा हूँ स्नेहा को स्कूल में बच्चों का पढ़ाना पसन्द था। इसलिए मैंने प्रिंसीपल से बात की।
स्नेहा- चलो ठीक है काम की बात बाद में होती रहेगी..! फर्स्ट प्रियॉरिटी रहेगी मम्मी को खुश रखना… हम उनका ख्याल रखेंगें।
फिर स्नेहा मेरी तरफ शरारती नज़र से मेरी और देखती हैं और मुस्कुराते हुए बोलती है..-चूँकि मम्मी को कुछ याद नहीं है तो हम अपनी लाइफ फिर से शुरू करते हैं। मम्मी के लिए हम उसी प्रकार अजनबी हैं जिस प्रकार से एक नई नवेली दुल्हन अपने ससुराल पहली बार आती है। हम लोग ने मम्मी का गृहप्रवेश कर ही लिया है । अब पापा..! आपकी जिम्मेदारी हैं कि अपनी दुल्हन को सुहागरात में ख़ुश करने की….!
सभी लोग स्नेहा की बात सुनके चौक जाते हैं…।
मैं धीरज की और देखता हूँ फिर नज़रे फेर लेता हूँ..।
धीरज- क्या स्नेहा तुम भी…बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देती हो।
फिर धीरज मेरी ओर देख के बोलता है.. “रश्मि तुम स्नेहा की बात का बुरा मत मानना.. ! वो थोड़ी चुलबुली , शरारती हैं।”
मैं शांत रहता हूँ कुछ नहीं बोलता हूँ।
मैं मन मे ही सोचता हूँ…” ये बात तो मैं भूल ही गया था.. ! एक पत्नी का काम सिर्फ घर संभालना नहीं होता..। अपने मर्द को भी खुश रखना होता है उसके साथ सोना होता है । मैं धीरज की पत्नी हूँ तो वो मुझे चोदेगा भी..।”
ये सब सोच के मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा है पता नहीं अब मेरे साथ क्या होगा?
उम्मीद है कहानी आपको पसंद आ रही होगी। अगले भाग में जल्द मिलेंगे।
आप अपनी राय मुझे mkb3390@gmail.com में जरूर भेजे..।