राजमहल 2 पार्ट 1

लेखक – सीमा सिंह और आमिर

प्यारे पाठकों, आप सभी को सीमा सिंह का प्यार भरा नमस्कार!

मैं काम के कारण की वजह से इस कहानी को नहीं लिख पा रही थी, तो मेरे दोस्त ने मुझे रिक्वेट की हम दोनों साथ में इस कहानी को लिखते है, मुझे उसका सुझाव अच्छा लगा तो हम दोनों इस कहानी को मिलकर लिखा रहे है।

जिसके फलस्वरूप इस राज्य को कोई नन्ना शहजादा या शहजादी मिल सके, तीन दिन बाद तीनों मृग(हिरण) वाटिका के लिए निकले और एक दिन बाद मृग वाटिका पहुंच गए।

फिर मृग वाटिका में तीनो मजे कर सम्भोग का आनद लेने लगे, वाटिका में वैसे सब सुख सुविधाएं थी परन्तु तीनो को पूर्ण एकांत मिले और कोई उन्हें तंग ना करे इसलिए वहां कोई सेवक, या सेविका नहीं थे।

सब काम दोनों राजकुमार और राजकुमारी को खुद ही करना पड़ता था, तीनों सब काम मिल कर कर रहे थे और एक दूसरे को पूरा समय दे रहे थे और प्रसन्न थे।

तीनों आपस में भोग ब्लाप नहीं लगे रहते थे, धीरे-धीरे समय बीतने लगा दो महीने हो चुके थे राजकुमारी सीमा पेठ से हो चुकी थी जिसके कारण उन्हें अब काम करने में कुछ तकलीफ होने लगी थी।

और दर्द में काम करने के कारण वह चिड़चिड़ी से हो गयी, एक दिन गर्मी भी बहुत थी और हवा भी नहीं चल रही थी, उस दिन राजकुमार जुबेर मृग वाटिका में बैठकर जानवर को पकड़ने के फंदे बना रहा था।

कि उसे बड़े जोर की प्यास लगी, उसे सामने से राजकुमारी सीमा खाना लेकर आती दिखाई दी, सीमा को देख के उसके चेहरे पर प्रसन्नता आ गई उसने कहा, रानी, मुझे एक गिलास पानी दे दो।

अब सीमा पेठ में दर्द के कारण चिड़चिड़ी थी और कहाँ तो राजमहल में इतने नौकर-चाकर होते हुए भी उसे यहाँ पेठ से होने पर भी सब काम करना पड़ रहा था वह मन-ही-मन खीज उठीं।

राजकुमारी सीमा ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, ‘तुम्हारा इतना ऊँचा दिमाग है तो जाओ, अपनी सेवा के लिए राजकुमारी मधुरिमा को रानी बना कर ले आओ।’

प्यासे और गर्मी से व्याकुल राजकुमार जुबेर ने यह सुना तो उसका पारा एकदम चढ़ गया आखिर राजकुमारी सीमा उसकी पत्नी थी और वो उसे ऐसे कैसे कह सकती थी ।

राजकुमार जुबेर बोला, जबतक मैं रानी मधुरिमा को नहीं ले आऊँगा, तब तक मैं तुम्हें हाथ भी नहीं लगाऊंगा, बात छोटी-सी थी, लेकिन उसने उग्र रूप धारण कर लिया।

राजकुमारी मधुरिमा कोसों दूर रहती थी। वहाँ पहुँचना आसान न था, रास्ता बड़ा दूभर था, जंगल, पहाड़, नदी-नाले, समुद्र, जाने क्या रास्ते में पड़ते थे।

किंतु राजकुमार जुबेर तो संकल्प कर चुका था और वह पत्थर की लकीर के समान था, उसकी समय राजकुमार वरुण जंगल से दो खरगोश अपने साथ ला रहा था।

वरुण की नजर जुबेर पर पड़ी जो गुस्से से राजकुमारी सीमा को देख रहा था, तभी सीमा की नजर वरुण पर पड़ी वो भाग कर वरुण के गले से लग गई।

और जोर जोर से रोने लगी और बोली मुझे गलती हो गई फिर उसने राजकुमार वरुण को सब कुछ बता दिया ये सुनकर पहले तो वरुण सीमा पर गुस्सा करने वाला था।

पर सीमा पेठ से थी, इसलिए उसका चिड़चिड़ी होना सामान्य था, उस दिन किसी ने भी किसी से कोई बात नहीं की, वरुण सोच रहा था जब भाई का गुस्सा चला जाएगा तो वो सीमा को माफ कर देंगें।

अगले दिन सब महल के लिए निकाल गए, महल पहुंचकर राजकुमार वरुण ने अकेले होते ही जुबेर को समझाया पर जुबेर उसकी बात माने को तैयार नहीं था।

राजकुमार वरुण ने उसे बार-बार समझाया कि राजकुमारी मधुरिमा तक पहुँचना बहुत मुश्किल है, राजकुमारी सीमा ने भी राजकुमार जुबेर से माफ़ी मांगी।

पर राजकुमार जुबेर अपने हठ पर अड़ा रहा, एक और वचन ले लिया उसने और बोला चाहे कुछ भी हो जाए, बिना रानी मधुरिमा के मैं इस महल में पैर नहीं रक्खूँगा।

आखिरकार फिर राजकुमार वरुण के सुझाव पर राजकुमार जुबेर, अपने मित्र अली को अपने साथ ले जाने के लिए मान गया, फिर दो घोड़े तैयार किए गए।

रास्ते के खाने-पीने के लिए सामान की व्यवस्था की गई और राजकुमार जुबेर तथा उसका दोस्त अली राजकुमारी मधुरिमा की खोज में निकल पड़े।

उन्होंने पता लगाया तो मालूम हुआ कि राजकुमारी मधुरिमा सुदूर मधुर द्वीप में रहती है, जहाँ पहुँचने के लिए सागर पार करना होता है, फिर रानी का महल चारों ओर से भयानक मायावी रक्षको से रक्षित है।

उनकी किलेबंदी को तोड़ कर महल में प्रवेश पाना असंभव है, अली ने एक बार फिर राजकुमार वरुण को समझाया कि वह अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दे अपनी जान को जोखिम में न डाले।

किंतु राजकुमार वरुण ने कहा तीर एक बार तरकश से छूट जाए तो वापस नहीं आता, मैं तो अपने वचन को पूरा करके ही रहूंगा, ये सब सुनकर अली चुप रह गया।

दोनों अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो कर रवाना हो गए, दोपहर को उन्होंने एक अमराई में डेरा डाला, खाना खाया, थोड़ी देर आराम किया, उसके बाद आगे बढ़ गए।

चलते-चलते दिन ढलने लगा, गोधूलि की बेला आई, इसी समय उन्हें सामने एक बहुत बड़ा बाग दिखाई दिया, राजकुमार जुबेर ने कहा, आज की रात इस बाग में बिता कर कल सुबह पहली किरण के साथ आगे चल पड़ेंगे।

बाग का फाटक खुला था और वहाँ कोई चौकीदार या रक्षक नहीं था, अली ने उधर

निगाह डाल कर कहा, राजकुमार ! मुझे तो यहाँ कोई खतरा दिखाई देता है।

हम लोग यहाँ न रुक कर आगे और कहीं रुकेंगे, राजकुमार जुबेर हंस पड़ा और बोला, ‘अली ! बड़े डरपोक हो तुम! यहां क्या खतरा हो सकता है ?, देखते नहीं, कितना हरा-भरा सुंदर बाग है!

अली ने कहा, ‘राजकुमार !आप मानें न मानें, मुझे तो लग रहा है कि यहाँ कोई भेद छिपा है, राजकुमार जुबेर ने उसकी एक न सुनी और अपने घोड़े को फाटक के अंदर बढ़ा दिया।

बेचारा अली भी उसके पीछे-पीछे बाग में घुस गया, ज्यों ही वे अंदर पहुँचे कि बाग का फाटक अपने आप बंद हो गया, अब राजकुमार जुबेर और अली के काटो तो खून नहीं, यह क्या हो गया ?

अली ने राजकुमार जुबेर से कहा, राजकुमार ! मैंने आपसे कहा था न कि यहां ठहरना मुनासिब नहीं ? पर आप नहीं माने, उसका नतीजा देख लीजिए।

राजकुमार जुबेर ने कहा, ‘ जो हुआ सो हुआ, मित्र मुझे तुम्हारी सलाह मान लेनी चाहिए थी चलो, वह सब छोड़ो! अब यह सोचो कि अब हम क्या करें?’

अली बोला, ‘अब तो एक ही रास्ता है कि हम घोड़ों को यहीं पेड़ों से बाँध कर छुपा दें और किसी घने पेड़ के ऊपर चढ़ कर छुप कर बैठ जाए, और देखें यहां क्या होता है ?

दोनों ने यही किया, घोड़ों को छुपा कर पेड़ से बांध कर वे एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गए और चुपचाप बैठ गए, रात हुई और अंधकार फैल गया, सन्नाटा छा गया।

राजकुमार वरुण और अली को नींद आने लगी, तभी उन्होंने देखा कि हवा में उड़ता कोई चला आ रहा है, दोनों काप उठे, हवा का वेग रुकते ही वह आकृति नीचे उतरी।

उसकी शक्ल देखते ही दोनों को लगा कि वे पेड़ से नीचे गिर पड़ेंगे, वह एक परी थी, उसने नीचे खड़े हो कर अपने इर्द-गिर्द देखा, तभी इधर-उधर से कई परियां आ गईं।

उनके हाथों में पानी से भरे बर्तन थे, उन्होंने वहां छिड़काव किया, वह पानी नहीं, गुलाब जल था, उसकी खुशबू से सारा बाग महक उठा।

अब तो उन दोनों की नींद उड़ गई और वे आंखें गड़ा कर देखने लगे कि आगे वे क्या करती हैं, हवा में उड़ती एक और परी आ रही थी, उसी समय कुछ परियां और आ गईं।

उनके हाथों में कीमती कालीन थे, देखते देखते उन्होंने वे कालीन बिछा दिए, फिर जाने क्या किया कि वह सारा मैदान रोशनी से जग मगा उठा।

अब तो इन दोनों के प्राण मुंह को आ गए, उस रोशनी में कोई भी उन्हें देख सकता था, जगमगाहट में उन्हें दिखाई दिया कि एक ओर से दूध जैसे फव्वारे चलने लगे हैं।

पेड़ों की हरियाली अब बड़ी ही मोहक लगने लगी, जब वे दोनों असमंजस में डूबे उस दृश्यावली को देख रहे थे, आसमान से कुछ परियां एक रत्न-जड़ित सिंहासन ले कर उतरीं और उन्होंने उस सिंहासन को एक बहुत ही कीमती कालीन पर रख दिया।

सारी परियां मिल कर एक पंक्ति में खड़ी हो गईं, राजकुमार जुबेर और अली ने अपनी आखें मलीं, कहीं वह सपना तो नहीं देख रहे थे!

अली बार-बार अपने को धिक्कार रहा था कि उसने राजकुमार जुबेर की बात क्यों मानी ?, पर अब क्या हो सकता था! आसमान में गड़गड़ाहट हुई। दोनों ने ऊपर को देखा तो एक उड़न-खटोला उड़ा आ रहा था।

यह क्या ?, राजकुमार जुबेर फुसफुसाया,  अली ने अपने होठों पर उंगली रख कर चुपचाप बैठे रहने का संकेत किया, उड़न-खटोला धीरे धीरे नीचे उतरा ।

और उसमें से सजी-धजी एक परी बाहर आई, वह उन परियों की मुखिया थी, सारी परियों ने मिल कर उसका अभिवादन किया और बड़े आदर भाव से उसे सिंहासन पर आसीन कर दिया।

फिर परियों ने अपने पंख उतारे और फिर सभी वस्त्र उतारे दिए जिससे जुबेर और अली को अंदाजा हो गया की अब परियां मैदान से आगे उद्यान की छोटी झील में नहाने के लिए जा रही हैं।

वह दोनों झील के बिलकुल पास पेड़ पर छिपे हुए गहरी चुप्पी के साथ, परी रानी और उनकी सहेलियों का तालाब पर स्नान के लिए आगमन का इंतज़ार करते रहे।

तालाब घनी झाड़ियों, पेड़ो और पौधों से घिरा हुआ लगभग एक एकड़ का छोटी सी जगह थी जिसका पानी बहुत स्वत्छ था जिसमे चाँद अपनी चांदनी बिखेर रहा था।

ये तालाब दूर से दिखाई भी नहीं देता था, वास्तव में ये परियों का गुप्त तालाब था जिसमे वह स्नान करने आती थी, तालाब से लगभग बीस या तीस वर्ग गज की दूरी पर।

जिसमें पेड़ों के बीच में घिरा हयी छुपी हुई एक जगह थी जहाँ परिया स्नान के दौरान अपने कपडे और पर रखती थी, तालाब का किनारे पर बारीक रेत थी।

और तालाब के किनारे एक पेड़ों की झाडी की शृंखला थी जिसे पकड़ कर तालाब के गहराई से बाहर निकल सकते थे, पास ही बह रही एक नदी से आ रही नहर से जुडी ताजे पानी की एक पतली-सी जलधारा थी

जो तालाब में गिरती थी, और फिर तालाब से एक नहर निकलती थी, जो मैदान और खेतो की तरफ़ जाती थी।

एक घने पेड़ पर चढ़कर, छिपे हुए राजकुमार वरुण और अली अधीरता के रोमांच के साथ परीयों की प्रतीक्षा करने लगे, जहां राजकुमार जुबेर और अली छिपे थे उन्हें वहां से तालाब का अच्छा नज़ारा मिल रहा था।

इसे देखकर राजकुमार जुबेर फुसफुसाया मित्र ये तो बहुत बढ़िया जगह है, मस्ती करने के लिए और ये स्थान गुप्त रहे इसका भी पूरा ध्यान रखा गया है।

यहां तक के तालाब के चारो और एक कांटों लगा लोहे का गुप्त बाड़ा (चारदीवारी) भी है जो की अब पेड़ों और झाड़ियों में पूरा छिप गया है, जिससे कोई अनचाहा मेहमान यहां नहीं आ सकता, ये किसने बनवाया है?

इस पर अली फुसफुसाया “राजकुमार! जहां तक मैं जानता हूं ये जगह ज़मीन जायदाद तो हमारे राज्य में ही है और ये मैंने एक बार अब्बा हज़ूर से सुना था कि ये तालाब या झील का निर्माण आपके पूर्वजो ने ही करवाया था।

राजकुमार जुबेर बोला यहां पर अपनी रानियों के साथ गुप्त रूप से मस्ती की जा सकती है हम रानी मधुरिमा के साथ विवाह पश्चात अपना मधुमास का कुछ समय यहां अवश्य बिताएंगे।

इस तरह कुछ मिनट के इंतज़ार के बाद उन्हें पास आती हुई परियों की टोली की हंसी की आवाज़ सुनाई दी तो अली ने राजकुमार जुबेर को ख़ामोश रहने का इशारा किया।

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