मेरे अंतरंग हमसफ़र भाग 8

द्वितीय अध्याय 

परिवार से मेलजोल

मेरे दोनों फूफेरे भाई मुझ से नाराज थे की मैं रूबी, टीना और मोना को साथ क्यों नहीं लायाl यह कहते हुए की तुम केवल अपनी प्रेमिका ही क्यों लाये? हमारा तुमने कोई ख्याल नहीं रखा उन दोनों ने रास्ते में मुझ से ज्यादा बात नहीं कीl

जब हम शहर पहुंचे तो कुछ ही देर बाद फूफा ने बताया मेरी बड़ी बुआ भी मेरी तीनो फूफेरी बहनो के साथ लंदन से दिल्ली आ रही हैं और यही कारण था की हम गाँव से वापिस दिल्ली लौटे थेl गाँव के दौरे ने मेरा लड़कियों की तरफ नजरिया बदल दिया थाl मैंने घर की देखभाल करने वाली प्रमुख सेविका आशा अम्मा से मिल कर पूरे घर का निरीक्षण करने का निर्णय कियाl मैंने आशा अम्मा को रोजी से मिलवाया और उसकी प्रशंसा करते हुए कहा गाँव में रोजी ने मेरी सब जरूरतों का बढ़िया ख्याल रखाl तो उन्होंने रोजी को मेरे कमरे और मेरी देखभाल करने की जिम्मेदारी दे दी l सबसे पहले जहाँ मेरा कमरा था, उसे देखा तो उसमे किताबी फैली हुई थी तो रोजी को उसे व्यवस्थित करने को कहाl

हमारा मुख्यता दिल्ली के दक्षिणी इलाके में फ़ार्म हाउस नुमा घर हैl उसमे मुख्यता तीन बड़े बड़े भवन हैं l सबसे आगे का एक भवन जिसमे बैठक पिताजी का दफ्तर और मेरे पिताजी और माता जी रहते हैंl मेरा भी अपने स्कूल की पढाई के दौरान मेरा कमरा भी उसी भवन की पहली मंजिल पर था आने वाले सभी मेहमान भी इसी पहले मुख्य भवन में रहते हैंl इसमें काफी सारे कमरे थेl

दुसरे हिस्से में मेरे स्वर्गीय दादाजी रहते थे l ये हिस्सा घर मुख्या हिस्से से थोड़ा अलग है l अपने जीवन काल में अधिकतर दादा जी इसी हिस्से में रहते थेl ये हिस्सा मुख्य भवन से थोड़ा सा बड़ा हैl जिसमे एक बहुत बड़ा हाल और कुछ कमरे हैं l घर की देखभाल की प्रमुख आशा अम्मा ने मेरा एकाकी स्वभाव और घर में भीड़ भाड़ को देखते हुए मुझे मेरे दादा का उनके इन्तेकाल के बाद से बंद पड़ा हुआ कमरा दे दिया गयाl उन्हें मेरे स्वभाव में आये परिवर्तन का अभी कुछ अंदाजा नहीं था और रोजी को मेरी और मेरे कमरे की देखभाल की जिम्मेदारी और उसके साथ ही लगता हुआ कमरा दे दिया गया l चुकी घर में काफी मेहमान आ गए थे तो घर की देखभाल के लिए और सहायको की आवश्यकता थी .तो रोजी ने फुर्ती से आशा अम्मा की सहायता करते हुए घर के कुछ काम अपने ऊपर ले लिए तो आशा अम्मा ने उसकी कार्य कुशलता की तारीफ कीl

मैंने सारे कामो को व्यवस्थित करवाने को कहा तो आशा अम्मा ने कहा इसमें थोड़ा समय लगेगा, तो मैंने भी मौके पे चौका मारते हुए कहा गाँव में कुछ और लड़किया थी जो काम अच्छे तरीके सलीके और मेहनत से करती हैं उन्हें बुला लेते हैं, आपकी मदद के लिए l जिसके लिए आशा अम्मा ने सहर्ष सहमति दे दी और मैंने फ़ोन करके रूबी, मोना और टीना को जल्द से जल्द दिल्ली आने को कह दियाl तीनो बोली वह रात की बस पकड़ कल सुबह तक आ जाएंगीl

जिससे आशा अम्मा भी प्रसन्न हो गयी की अब मैं भी समझदार हो गया हूँ और घर की जिम्मेदारी उठाने लग गया हूँ l ये सुन कर की टीना रूबी और मोना भी आ रही हैं टॉम और बॉब भी बेहद खुश हो गए l

इसके इलावा तीसरा भवन था जिसमे पिताजी की कुछ अन्य स्त्रिया अपने बच्चो के साथ रहती थी ( हमारे यहाँ पुरुषो के द्वारा एक से अधिक स्त्रियाँ रखने की प्रथा रही है) l और फिर इसके इलावा चौथे हिस्से में कुछ सेवक सेविकाओं के के कमरे थे जिनमे सेवक सेविकाएं और उनके परिवार रहते थेl

वहां पर मुझे एक बहुत सुन्दर युवती मिली जिसका नाम अलका थाl वह मेरी कजिन ( छोटी बुआ की लड़की) थी l वह मुझे देख कर बोली दीपक आज आप इधर का रास्ता कैसे भूल गए,?

तो मैंने कहा की पिताजी विदेश गए हैंl मुझे घर की देखभाल की जिम्मेदारी दे गए हैं, तो मैं देखने आया हूँ, किसी को कोई दिक्कत तो नहीं है l 

फिर अलका ने मुझे वहां हमारे पूरे परिवार से मिलवाया और कइयों से तो मैं पहली बार ही मिला थाl सब मुझ से मिल कर बहुत खुश हुए और मैंने सब बड़ो के पाँव छुए और कुछ फल मिठाईया दी जो हम गाँव से अपने साथ ले आये थेl सबने मुझे आशीर्वाद दिया और मैंने अपने से छोटो को कुछ चॉक्लेट के तोहफे दिए, जिससे वो खुश हो गएl 

अलका की माँ, मेरी छोटी बुआ ने कहा मुझ में मेरे बाप दादा के गुण स्वाभविक तौर पर आ गए हैंl मैंने वहां मिली लड़कियों को गाँव से लाये कुछ कपडे तोहफे में दिए जो उन्हें बहुत पसंद आये और सब खश हो गयीl

मैंने सबसे कहा अगर किसी को भी कुछ चाहिए हो तो निस्संकोच मुझ से कह सकता हैl मैं जल्द से जल्द उस जरूरत को पूरा करने की कोशिश करूंगा l पर किसी ने कुछ ख़ास मांग नहीं रखीl

भवनों के पीछे एक बहुत बड़ा सुन्दर बगीचा है l फिर उसके पीछे कुछ खेत और चरागाह भूमि थी और उसके पीछे काफी बड़ा जंगल है l मुझे अलका ने वह सब कुछ दिखाया l तो मैंने अलका को अपनी एक अंगूठी देते हुए कहा मेरी तरफ से ये तोहफा कबूल करो l तो अलका ने उसे ले लिया और बोली मुझे आपसे कुछ और भी चाहिए और मुझे गालो पर किश करके भाग गयी lपहले तो मैंने उसका पीछा करने की सोची, फिर चुकी रात होने लगी थी इसलिए सब विचार छोड़ कर वापिस आ गयाl

रात के खाने के बाद सब काम निपटाने के रोजी मेरे पास आ गयीl हम दोनों एक नहाये और फिर मैंने उसे रात में दो बार चोदा और फिर एक दुसरे के साथ चिपक कर सो गएl

अगले दिन सुबह सुबह जब बड़ी बुआ आयी तो मैं अपनी बुआ से मिला उनके चरण स्पर्श किये, तो उन्होंने मुझे अपने गले लगा कर कहा मेरा भतीजा अब एक सुन्दर बांका जवान बन गया हैl उनसे मिलने के बाद मैं अपनी तीनो फूफेरी बहनो से भी गले मिलाl इस बार उन्हें मिल कर मुझे एक अलग ही आनंद मिला l फिर घर में सबके रहने का इंतजाम किया गया l

तो मैंने एकांत में दोनों फूफेरे भाइयो से कहा भाइयो क्या तुम्हे पता था बुआ आ रही है तो वो बोले हाँ हमें उनका कार्यक्रम पहले से पता थाl तो मैंने कहा अगर आप मुझे भी बता देते तो मैं रूबी टीना और मोना का हमारे साथ दिल्ली आने का प्रबंध पहले ही कर देता. क्योंकि पिताजी ने विदेश जाते हुए मुझे सबका ख्याल रखने की जिम्मेदारी दी थीl चलो कोई बात नहीं आगे से ऐसा कोई राज मत रखना और कभी ये मत सोचना के मैं उनके बारे में नहीं सोचता हूँ l हालात को देख समझ कर ही चलने से सब काम ठीक से हो पाते हैं, तो वह माफ़ी मांगते और शुक्रिया कहते हुए मेरे गले लग गए l

तो मैंने कहा भाई लोगो अब घर में कुछ और लोग भी हैं खासकर महिलाये और लड़किया, इसलिए हमे अपने आगे के प्रेमालाप के कार्यक्रम काफी सावधानी और गुप्त रूप से करने होंगे ताकि हमारे राज खुल न जाएl सबने जरूरी सावधानी रखने का वादा किया और मुझे घर में गुप्त प्रेमालाप के लिए कोई सुरक्षित स्थान ढूंढ निकालने का काम सौंपा गया l जिसमे मैंने रोजी की सहायता लेने का निर्णय किया l

मेरी फूफेरी बहनो का नाम जेन लूसी और सिंडी , क्रमशः, उन्नीस अठारह, अट्ठारह । दो बहने अठारह सालो की कैसे ये खुलासा कहानी में आगे करूंगा l

आगे क्या हुआ …

ये कहानी जारी रहेगी – द्वितीय अध्याय – परिवार से मेलजोल

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