कामाग्नि – 1

मेरा नाम अभिषेक कुमारा | मंझला कद मध्यम आकारा |
गौर वर्ण आंखें कजरारी | गोल मटोल गांड मतवारी |
गोरी गांड जवानी कोरी | तेइस बरस युवा इंदौरी |
लंबे बाल सुसज्जित दाढ़ी | कसरत करके बनाई बॉडी |
मैं मुसुकाउ मर्द गिरी जाये | टपके हवस लंड़ तन जाये |
हर एक चाहे मारना गांड | कच्चे बूढ़े और जवान |
मिला कई लड़कों से कोही | अगन वासना शांत ना होई |
मैं अभिलाषी अतृप्त अभागा | ढूँढूं राजकुंवर या राजा |

दोहा-   फूल बदन नाजुक कमर , यौवन कनक समान |
      अगन वासना में जलु , होए नहीं हलकान ||1||

एक दिन सुबह मैसेज आया | इंस्टाग्राम बहुत चिल्लाया |
कॉमन फ्रेंड परिचय करवाया | अर्पित अपना नाम बताया |
सुबह सुबह मिलने को बुलाया | दो गली छोड़ पता बतलाया |
निकल पड़ा करके तैयारी | धक धक धक दिल धड़के भारी |
उसने मेरा नाम पुकारा | बीच मार्ग रोका आवारा |
सिगरेट लेकर चले दोनों | मौन मस्त मतवाले दोनों |
रूम पहुंचकर उसको देखा | नहीं मिला कोई पहले ऐसा |
स्थिर आंखें बदन सकुचाया | दिल लंड़ गांड बहुत मचलाया |

ऊंचा कद तगड़ा बदन, छब्बीस साल जवान |
छोटे बाल शिशु सा मुख, युवा वीर बलवान ||2||

बिस्तर के कोने मैं बैठा | वह पसर के बगल में लेटा |
हाथ पकड़ कर उसने खींचा | उसके ऊपर गिरा समूचा |
आंखें बंद होंठ टकराये | अगन वासना को भड़काये |
लपका मेरे ऊपर ऐसे | झपटे सिंह हिरण पर जैसे |
कसकर जकड़े जाएं भुजा में |  काम हवस घुल जाए फिजा में |
उसके वजन दबा मैं नीचे | गर्दन गाल गला सब भींचे |
कांधे होंठ जो खेल रचाई | प्रेमनिशान दिया हरजाई |
एक एक बटन भुसट के खोलें | अधर शांत नयनो से बोले |

पत्थर पर पत्थर पड़े, होय चोट पर चोट |
चिंगारी अग्नि बने जब, मिले होंठ पर होंठ ||3||

अर्पित ने टी शर्ट उतारी | होंठ चूसता जाय अनाड़ी |
गोरी शेव करी हुई छाती | आकर्षण सा नशा चढ़ाती |
दोनों बहके काम अगन मे | मास नवम्बर शीत पवन मे |
निप्पल चूसे और दबाये | बदन गांड सबकुछ सहलाये |
छाती चूसे दाँत गड़ाये | दूजा प्रेमनिशान बनाये |
सिसकू मैं और छपटाऊं | बाबू बाबू मैं चिल्लाऊं |
कान पकड़ कर उसे धकाऊं | उसकी चड्डी हाथ ले जाऊं |
उसके लंड़ पर हाथ फिराया | सिसका आह बहुत बौराया  |

विरह – मिलन दोनों दुखे, ऐसी कैसी प्रीत |
घाव वही मरहम वही, बाबू ऐसा मीत ||4||

उसके ऊपर मैं चढ़ आया | चुंबन लिया तनिक मुसकाया |
मस्तक होंठ गाल सब चूमू | कामुक मस्त बदन पर झूमू |
छाती चूमू बगले चाटू | निप्पल चूसू कंधे काटू |
मैं अपना अधिकार जताऊं | काट काट के निशान बनाऊं |
सिसके आह वीर हरषाये | कंधा पकड़ नीचे धकलाए |
पांच इंच लंड़ गोरा गोटा | लौह समान कड़क और मोटा |
सूंघू लंड़ झाट और गोटा | आह करे जवान सूर छोटा |
जो लंड़ मुंह मैंने भर डारा | गया स्वर्ग आनंद अपारा |

पानी जलाये पानी, आग बुझाये आग |
एक दूजे की अगन बुझाये, एक दूजे की आग ||5||

टोपा जो उसका मैं चूसू | अंदर करूं गले तक ठूंसू |
पूरा लंड गले तक जाये | बाबू आह आह चिल्लाये |
पकड़े सिर लंड अंदर डाले | निकले आंसू हुआ बेहाले |
उसका लंड जीभ से चाटू | मस्त मजा उसको भी बांटू |
गोटे पर जब जीभ लगाई | आंखें मिले प्रेम टपकाई |
चढ़ आया फिर ऊपर मेरे |  पेले लंड गले तक मेरे |
तेज तेज मुंह चोदे जाये | अटके सांस सहा ना जाये |
चूस चूस मुंह लगा दुखाने | बाबू बदन लगूं चिपकाने |

चूसू जैसे लंड हो, एक रसीला आम |
अब दोनों मस्त हुए, करें मिलन का काम ||6||

अब मिलने की बेला आई | बाबू मुझे दिया पलटाई |
कॉण्डम पहने तेल लगाये | गांड छेद पर लण्ड फिराये |
लण्ड सेट कर धक्का मारे | टोपा घुसा दिख गए सितारे |
जोरदार एक झटका मारे | अर्पित पूरा लण्ड उतारे |
दरद होय मैं छपटू ऐसे | बिन पानी मछली के जैसे |
ऊपर लेटे दबाए ऐसे | दबे फूल पर्वत के नीचे |
पीछे से कांधे को चूमे | जुड़े बदन मस्ती से झूमे |
मैं सुकुमार फूल सा प्यारा | वह पेलवान मस्त आवारा |

भंवरा चढ़े कली पर, तो कली खिल जाए |
तरुणाई यौवन बने, रूप रंग सब पाए ||7||

धीरे धीरे चोदे जाये | लण्ड पेट भीतर तक जाये |
वजन दबू नीचे सिसकाऊं | कसकर जकड़े छुड़ा ना पाऊं |
धक्क – धक्क लगे धक्का लगाने | दोनों आह लगे चिल्लाने |
बदन से मेरा बदन ढकाये | चुंबन होंठ शुरू हो जाये |
लेटे सीधा लण्ड तनाये | लण्ड ऊपर वह मुझे बिठाये |
घप्प कर लण्ड डाले अंदर | नीचे से चोदे वो भयंकर |
नीचे झुकू बदन चिपकाऊं | निप्पल चूसू दांत गड़ाऊं |
सट्ट सटासट चोदे जाये | दोनों काम मगन चिल्लाये |

काम युद्ध ऐसे लड़े, जैसे दो पिलवान |
कोई किसी से कम नहीं, दोनों एक समान ||8||

फिर वो  उठे खड़ा हो जाये | मुझको घोड़ी दिया बनाये |
कमर पकड़कर झटका मारे | लण्ड पेट भीतर तक गारे |
एक पल लण्ड निकाले पूरा | अगले ही पल डाले पूरा |
डॉटेड कॉण्डम लागे ऐसे | गाण्ड चले हो आरी जैसे |
तेज तेज चोदे हरजाई | थप थप थप आवाज गूंजाई |
गाण्ड फटी हुआ मैं दिवाना | गाण्ड गला खुला एक समाना |
खप खप खप गाण्ड मेरी खोदे | बाबू मुझे बैल सा चोदे |
चोद चोद के गाण्ड सुजायी | अर्पित खुजली दिया मिटायी |

 गांड फटे गला फटे, दोनों ही गये खुल |
बाबू मुझे चोदे जैसे, सांड मसले फूल ||9||

अर्पित सीधा मुझे लिटाया | गाण्ड तले तकिया खिसकाया |
कांधे ऊपर टांग रखाई | सट से पेल दिया हरजाई |
मैं उसके कंधे को पकडू | गोरी बड़ी भुजा को जकडू |
आंखों से वो आंख मिलाये | होंठ मिलाय प्रेम टपकाये |
सहसा अपनी गति बढ़ाये | लण्ड हलक को लगने आये |
हांफे दोनों जोर-जोर से | प्रेम मगन पृथक ही जगत में |
तेज सिंह सा गरजा बाबू | छूटा वीर्य हुआ बेकाबू |
सिकुड़े फूले लण्ड तनाये | वीर्य गाण्ड मे भरता जाये |

काम कर्म में मगन हम, जग को दिए भुलाय |
एक दूजे के अंदर ही, परमानंद को पाय ||10||

गिरे निढाल थके हम दोनों | भीगे स्वेद बदन हम दोनों |
हुआ पुनः फिर चुंबन जारी | मुख संतोष ह्रदय गति भारी |
मुरझाया लिंग बाहर आया | बाबू ने कॉण्डम हटाया |
अर्पित सिगरेट लिया जलाये | पास लेटकर धुआं उड़ाये |
कांधे सिर रख मैं लिपटाऊं | बाबू से फिर मैं बोलाऊं |
अर्पित मुझको गीत सुनाया | जाने की ज़िद ना करो गाया |
दो घंटे तक चली चुदायी | पहनू  कपड़े करो लेऊ विदायी |
अंग अंग जब लगे दुखाये | परमानंद मिले सब पाये |

बाबू लण्ड से चुदकर, मैं हो जाऊं धन्य |
प्रेम पीड़ा में छुपा, परमानंद अनन्य ||11||

                                          कवि सुकुमार

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