नया जीवन भाग-3

हैलो फ्रेंड्स उम्मीद है कि आप स्टोरी का आनंद ले रहे होंगे । यदि आप लोगो इस कहानी के पिछले दो भाग नहीं देखे हैं तो पहले उनको पढ़ लीजिए, जिससे आपको कहानी अच्छे से समझ आएगी और आनंद की अनुभूति होगी। तो चलिए कहानी को जारी रखते हैं…

स्नेहा की बातें सुनके मुझे अजीब से ख़्याल आ रहे थे..। धीरज और मैं एक दूसरे से नज़रे नहीं मिला पा रहे थे… हम दोंनो सच में ऐसा बर्ताव कर रहे थे, जैसे आज हमारी सुहागरात हो..!

फिर स्नेहा मुझे किचन में ले गई और हम दोनों साथ में मिलके डिनर की तैयारी करने लगे..। वैसे मैने घर में कई बार खाना बनाया था लेकिन उतने अच्छे से नहीं आता था। पर रश्मि की बॉडी में बात ही अलग थी..। सब काम मैं बड़ी आसानी से कर पा रहा था शायद ये रश्मि की मसल्स मैमोरी के कारण हो रहा था। बिना कोई थकावट के हमनें 8 बजे तक डिनर रेडी कर लिया। इसी बीच स्नेहा मुझे हमारे रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों के बारे में बताती रही। उनका रहन -सहन ,व्यवहार आदि चीज़ो के बारे में बात करती रही।

अभी तक मेरी याददाश्त वाली बात हम चारों के आलावा किस और को नहीं बतायी गयी थी। अब सबको बताना अच्छा नहीं लगता है कि याददाश्त चली गयी है लोग गलत मतलब निकालते हैं फायदा उठा सकते हैं। मुझे रश्मि के तौर तरीकों के बारे में समझाया गया कि लोगों से किस टाइप से बात किया करती थी।

वैसे जो जो बात स्नेहा मुझे बोल रही थी वह सब मैं पहली बार सुन रहा था लेकिन कुछ नया जैसा नहीं लग रहा था। मानो ये सब मैंने आंखों से देखा हो।

कई रिश्तेदारों, पड़ोसियों के बारे मैंने कुछ सेकेंड्स में ही रिकॉल कर लिया। जैसे मैं पहले से जनता हूँ । अब हम सब साथ में बैठ कर डिनर कर रहे थे। अब मैं थोड़ा कम्फ़र्टेबल फ़ील कर रहा था स्नेहा की बातें सुनके।

स्नेहा फिर बोल पड़ती है, “आज मम्मी की पहली  रसोई है… सब लोग बताओ खाना कैसा बना है? “

इतने में दीपक बोल पड़ता है-“खाना बहुत स्वादिष्ट बना है मम्मी..! सच में बिल्कुल पहले जैसा।

मुझे ये सब सुनके थोड़ी शरम आ रही थी…।

मैं बोला- थैंक्यू बेटा..! वैसे स्नेहा सही ही बोल रही है मुझे सच में लग रहा  है पहली बार खाना बनाई हूँ..।

स्नेहा- अरे पापा..! आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे..! मम्मी को पहली रसोई का सगुन तो दो..!

धीरज फिर अपनी जेब से 5000 रुपये निकाल के देता है और बोलता है- रश्मि ये लो तुम्हारा सगुन ..! खाना वाक़ई में अच्छा बना है..।

ये सब सुनके मेरी शरम और बढ़ गयी मैंने बोला- रहने दीजिये..! इसकी क्या जरूरत…। बच्चे तो ऐसे ही मज़ाक कर रहे हैं। 

धीरज- अरे नहीं रश्मि..! रख लो… बाद में काम पड़ेंगे..।

धीरज के बार-बार बोलने पर मैंने पैसे रख लिए ।

 फिर डिनर करके मैंने और स्नेहा ने बर्तन साफ कर दिए..। थोड़ी देर टीवी देखे..। फिर मुझे नींद सी आने लगी थी..।

‘मैं सोने जा रही हूँ ‘ बोलकर मैं अपने रूम की और चल पड़ा..।

पीछे से स्नेहा और दीपक ने गुड नाइट मम्मी बोले..!

मैंने भी गुड नाईट बोलकर रूम के अंदर आ गया।

मैने सोचा साड़ी सोना सही नहीं रहेगा.. तो मैंने अलमारी में देखा तो बहुत से नाईट गाउन रखे थे। उन्ही मैं से एक नाईट गाउन निकाला। और साड़ी ब्लाउज उतार कर नाईट गाउन पहन लिया। इसमें बढ़िया लग रहा था एक दम फ्री-फ्री खुला खुला.। दीवार से टिक के बेड में बैठा हुआ था। थोड़ी देर बाद धीरज रूम के अंदर आ गया। मैं चौक गया। और अपने कपड़े ठीक करने लगा। मैं भूल ही गया था ये भी इसी बेड पे मेरे साथ सोयेगा। फिर फिर अपनी शर्ट उतारने लगा.. मैं सोच में पड़ गया ये शर्ट क्यू उतार रहा है,इसका इरादा क्या है कहीं ये सच मे तो सुहागरात नहीं मानने की सोच रहा। 

धीरज दिखने में ठीक-ठाक था , फिट लगता था हल्का सा पेट बाहर की और निकला था लेकिन बाजूओं में डोले शोले आराम से दिखते थे।जैसे कोई पहलवान हो। मैं धीरज के गठीले शरीर को देख रहा था.. मुझे अजीब सा फील हो रहा था। मैं उसके शरीर को निहार था। मेरा मन उसकी छाती को छूने का हो रहा था। फिर उसने अपनी पेंट भी उतार दी । उसकी 2 बड़ी बड़ी माँसल जांघे दिख रही थी । और अंडरवियर पे लण्ड का शेप साफ दिख रहा था। पता नहीं मुझे क्या हो रहा था ..। ये कैसी फ़ीलिंग है मैं समझ नही पा रहा था..। 

मैं सहम सा गया था चादर को अपनी और भींच के पकड़कर कर बैठा था…। फिर धीरज ने लौवर और टीशर्ट पहन लिया। ये देख के मेरी जान में जान आयी।

फिर धीरज बेड के दूसरी तरफ आकर बैठा, और मेरी ओर मुड़कर उसने मुझसे कहा..”तुम्हें घबराने और डरने की कोई जरूरत नही है..। मैं तुम्हारी कंडीशन समझता हूँ। मैं कुछ भी ऐसा वैसा नहीं करूंगा जिससे तुमको असहजता हो..।  तुम्हारी मंजूरी के बिना कोई भी कदम आगे नहीं  बढ़ाऊँगा।

अभी मैं तुम्हारे लिए एक अजनबी हूँ। पर एक बात जरूर है कि मैं तुमसे पिछले 22 साल से बेहद प्यार करता  आया हूँ। हमारी शादी कम उम्र में हो गयी थी जब तुम 18 साल की और मैं 23 साल का था। तक से लेकर अभी तक हम सुख दुःख में हमेशा साथ रहे है और आगे भी रहेंगे। 

हम फिर से शुरुआत करेंगे.. इस घटना से एक फायदा ये हुआ है कि मैं फिर से पुराने प्यार के दिन जीने का मौका मिलेगा। मैं तुम्हें  प्यार दूँगा और तुम्हें भी कुछ समय बाद मुझसे प्यार हो जाएगा।

तुम्हें यदि असुविधा हो रही हो तो मैं नीचे बिस्तर लगा के सो सकता हूँ…।

मैं उसकी इतनी प्यारी-प्यारी  बात सुनके भला कैसे उसको नीचे सोने के लिए बोल सकता था। मैंने बोला- रहने दीजिए बेड मैं बहुत जगह है  हम आराम से सो सकते हैं मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी।

फिर धीरज मेरे बाजू मैं लेट गया और  गुड नाईट बोल के सो गया । मैं भी अब मेरी जगह मैं सो गया। मैं सोच रहा था धीरज कितना सही आदमी है मैं बिना मतलब के डर रहा था। फिर मैं भी सो गया । 

‘फिर से मुझे रात मैं रश्मि के सोने आये और सुबह हो गयी और मैं उठ गया। फ्रेश होकर नहा धोकर नाश्ता बनाये। फिर उसके बाद खाना।  फिर दोपहर में आराम थोड़ा बहुत आसपास के मोहल्ले के लेडीज़ से मिलना- जुलना 

ऐसा ही रूटीन कई दिनों तक चलता रहा। मैं भी घुल-मिल गया था , सभी लोगों से अच्छे से बात करने लगा था कहा जाए तो मैं अब अजनबी नहीं बल्कि परिवार का हिस्सा बन गया था स्नेहा के हँसी मज़ाक अभी भी चालू थे..। अब मुझे बुरा नहीं लगता था मैं कई बार हँसी मज़ाक कर लेता था दीपक और स्नेहा से। धीरज से भी कंफ़र्टेबल होकर बात करने लगा था। एक महिला के रोल में मुझे अब अच्छा लगने लगा था मुझमें अब महिलाओं वाली आदतें भी आने लगी थीं।  तैयार होना, सजना-सँवरना, साफ-साफाई रखना। मोहल्ले के लेडीज के साथ गपशप करना। कुछ दिन बाद धीरे- धीरे स्नेहा ने भी घर के काम में हाथ बंटाना बन्द कर दी थी । अब मैं घर सारा काम अकेले किया करता था। मुझे कोई दिक़्क़त भी नहीं होती थी इन्फेक्ट मुझे घर का काम , सफ़ाई करने में अलग ख़ुशी मिलती थी। सब  कुछ ठीक चल रहा था। फिर खबर मिली कि कुछ दिन बाद राज के घर में राज की तेरहवीं का कार्यक्रम का है। मैं इन सब चीजों मैं इतना खो गया था कि मैं भूल गया था मेरा एक और परिवार भी हैं। मैं अपने माँ-बाप भाई के बारे में भूल ही गया था। ये सब सोच के मैं फिर उदास हो गया ।  

दो दिन बाद हम राज यानी मेरे घर पर गए। वहाँ तेरहवीं का कार्यक्रम चल रहा था । मेरी फ़ोटो रखी हुई थी जिसमें हार चढ़ा हुआ था। वहाँ मैने मेरे बड़े भाई राहुल को देखा जो आसपास व्यवस्थायें देख रहा था । मेरे पिता जी आदमियों के समूह के बैठे थे और मेरी मम्मी उदास दिख रही थी जो महिलाओं के बीच मे थी। हम लोगों मेरी फ़ोटो पर फूल माला अर्पण करके श्रधांजलि दी और मेरी मम्मी (शीतल) से मिलने उनके पास गए। वो हम लोगों को देखकर रोने लगी और राज को याद करने लगी..। उनको देखकर मेरे भी  आँसू आने लगे..। मेरा मन कर रहा था अभी सच बोल दूँ कि आपका बेटा मरा नहीं अभी जिंदा है । लेकिन भगवान ने इस मोड़ पर लाके खड़ा किया है कि मैं कुछ बोल भी नहीं सकता । लोग उल्टा मुझे पागल बोलेंगे।  यदि मैं सच में बता दू तो क्या ये मुझे अपनाएंगे..?  शायद नहीं …क्योंकि मैं उनका नौजवान बेटा हुआ करता था..। जो अब एक अबला नारी हैं इससे दोनों परिवारों के ऊपर संकट आ सकता है। अभी बेहतर यही होगा कि दुनिया की नज़र में राज के मर जाने में भी भलाई हैं।क्योकि समाज और साइंस इन सब चीजों पर विश्वास नहीं करती है..।

बाक़ी मैंने फैसला कर लिया है कि,  जब भी  मौका मिले मेरे पुराने परिवार की ख़ुशी के लिए जो हो सके हर सम्भव प्रयास करूँगा। 

मेरी मम्मी शीतल ने मेरा (रश्मि ) का हालचाल तबियत के बारे में पूछी..। 

मैं- मैं ठीक हूँ दीदी.. ! मुझे बहुत अफसोस है कि आपका बेटा इस दुनिया में नहीं रहा… बहुत प्यारा बचा था। आप चिंता मत कीजिए आप की इस दुःख घड़ी में हम सब आपके साथ है । धीरज और सभी लोगों ने भी हामी भरी..।

 फिर हम लोग साइड में रखी चेयर्स में बैठ गए । मैं और धीरज ही बैठे थे दीपक पता नहीं कहा चला गया था। मैंने थोड़ी दूर नज़र पड़ी तो देखा स्नेहा , राहुल भैया से बात कर रही थी थोड़ी उदास लग रही थी..।

 और उदास हो भी क्यों न हो उसका बॉयफ्रेंड अब नहीं रहा उसने बड़ी समझदारी से अपना दर्द हम सब से छुपा के रखी है।

फिर मैं उनकी तरफ जाता हूँ, राहुल मुझे देखकर नमस्ते करता है और मेरी तबियत के बारे में पूछता है।

मैं- मैं ठीक हूँ बेटा..! तुम ठीक हो ना…?

राहुल- जी आंटी जी में ठीक हूँ।

मैं- बहुत अच्छे बेटा..! तुम्हे स्ट्रांग रहना है.. तुम्हें ही अब परिवार को संभालना है। 

राहुल- जी आंटी जी.. आप लोगों के यहाँ आने के लिए बहुत शुक्रिया.. मैं और पापा जी तो ठीक ही है लेकिन आप लोगों के आने से मम्मी को काफी सपोर्ट मिला..।

मैं- कैसी बात कर रहे हो बेटा…! दुःख की घड़ी में अपने ही काम नहीं आएंगे तो कौन आएगा। राज भी मेरे बेटे जैसा ही था। 

फिर वहाँ पे मेरे पापा रमेश आ जाते हैं। वो मुझे देखते हैं और मुस्कुराते हुए नमस्ते भाभी जी ! बोलते हैं..!

मैं भी जवाब में नमस्ते भाईसाहब बोलता हूँ..।

रमेश- आप लोग आए हमे   बहुत अच्छा लगा.. आइये भोजन कर लेते हैं। 

फिर हम सब ने मिलकर भोजन किया और ढेर सारी बातें किये ।

 पापा की बात से लग रहा था वो रश्मि को और आकर्षित हैं.. शायद ये मेरा वहम भी हो सकता है। लेकिन वो  मुझसे बात करते हुए उदास नहीं लग रहे थे मानो कुछ समय के लिए  वो अपने बेटे को खोने का गम भूल गए हो। खैर मुझे सभी को ठीक ठाक देखकर अच्छा लगा। मम्मी थोड़ी इमोशनल है अभी लेकिन वो भी धीरे धीरे सब भूल जाएगी।  इसके बाद हम लोग अपने घर आ गए।

हम लोग काफ़ी थक गए थे, सीधे सब लोग अपने अपने रूम जाकर सो गए..। अगले दिन से वहीं पुराना रूटीन चालू..। घर का काम करो..आराम करो और सो जाओ..। मुझे थोड़ी अब बोरियत सा लगने लगा था…। दिनभर घर पे रहना। 

दो दिन बाद डॉक्टर के पास नॉर्मल चेकअप कराने गए.. कही कोई आंतिरक चोट या रिएक्शन न हो..। मेरा चेकअप हो गया फिर डॉक्टर रिपोर्ट लेके आया..।

डॉक्टर ने बोला-इनकी ब्रैन सेल काफी हद तक ठीक हो चुकी है…। मुझे लगता है इनकी आधी याददाश्त भी आ चुकी है..।

मैंने ये सुन के चौक गया.. डॉक्टर कैसे इसका अंदाजा लगा लिया… मुझे रश्मि की स्कूल लाइफ तक की याददाश्त रिकॉल हो चुकी थी ।

मैंने हाँ मैं सिर हिलाया…और बोला हाँ, मुझे स्कूल लाइफ तक की थोड़ी थोड़ी बाते याद आती है।

सभी ये सुन के खुश थे…। फिर हम घर आ गए।

अगले दिन मेरे पेट में बहुत तेज दर्द उठा..। मैं बाथरूम के लिये भागा.. वहाँ जाके देखा मेरी चूत से खून निकल रहा था। मैं समझ गया था ये मेरे पीरियड का टाइम चल रहा है। अब में महसूस कर पा रहा था कि लड़कियों को हर महीने 4-5 दिन कैसे इस दर्द को झेलती होगी..। मैंने स्नेहा से थोड़ी मदद माँगी.. उससे पैड लिए…। स्नेहा बोली- आपको पता है न पीरियड आने का क्या मतलब है।

मैं बोला- हाँ पता है..।

स्नेहा- (मुस्कुराते हुए) यदि आप भूल गयी हो तो मैं बता देती हूँ..

जबतक आप के पीरियड आते रहेंगे तब तक आप बच्चे पैदा कर सकती है.. इसका मतलब ये  है कि आप चाहें तो प्रेग्नेंट हो सकती हैं मुझे मालूम है आपने नसबंदी का ऑपरेशन नहीं कराया हैं..। मुझे कोई दिक्कत नहीं होंगी यदि मेरी छोटी बहन या भाई इस दुनिया में आये..।

मैं शरमा गया.. ये क्या बोल रही है स्नेहा..!

मैंने फिर मज़ाक के लहज़े में जवाब दिया- आजकल तू बहुत मज़ाकिया बातें करने लगीं है लगता है तेरी शादी करनी पड़ेगी … फिर तू बच्चे करते रहना बच्चे पैदा..।

स्नेहा- अभी कहाँ मम्मी..!अभी तो मैं छोटी हूँ आप अभी बुड्ढी भी नहीं हुई… लोग तो आपको मेरी बड़ी बहन बोलते हैं..।

मैं- चुपकर..बहुत नटखट जो गयी है तू..।

स्नेहा- मम्मी..! मैं सोच रही थी हम काफ़ी दिनों से शॉपिंग पे नहीं गए हैं क्यों न हम कल मार्केट चले..। और इस बार मैं आपके लिए कपड़े सलेक्ट करूँगी आज के समय के…। पहले आप अपनी पसंद के पुराने जमाने के कपड़े खरीदती थी..। अब मैं आपको नए जमाने के हिसाब से रहना सिखाऊंगी..।

मैं भी घर में बोर होता था, सोचा.. यही सही रहेगा…। थोड़ा घूम फिर लूँगा…। मैंने हाँ कर दिया..।

स्नेहा- ठीक है तो तय रहा..कल हम शॉपिंग पे चलेंगे.. आप पापा से पैसे ले लेना..।

मैं बोला- ठीक है।

आगे कहानी जारी है…

कहानी कैसी लग रही है, आप मुझे mkb3390@gmail.com पर जरूर बताये..।

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